धीमे धीमे सिमट रहा हूँ
तुम्हारी बाहों में।
मिटाकर अपनी शख्सियत
इस मदहोश रात में।
छन छन के आ रही है
चांदनी बादलो से।
और छू रही है
तुम्हारे बदन को, करीने से।
अब सिर्फ एकात्म है।
टूट गयी है सारी परतें।
कोई सीमा नहीं है
अस्तित्व की।
Coprights: Neelesh Maheshwari