(१)
वो अधूरे खत,
जो शुरू होते हैं,
तुम्हारे नाम से,
आज भी रखे हैं,
मैंने सहेजकर ,
इस उम्मीद में ,
कि शायद उन्हें,
पूरा कर पाऊँ,
एक दिन , और
भेज दूँ , तुम्हे
तुम्हारे पते पर।
और उतार दूँ ,
इस बोझ को ,
अपने सीने से ,
मरने से पहले।
(२)
पर ये कम्बख्त,
कलम की स्याही,
सूख गयी है ,
इन्तजार करते करते।
पर भावनाएं ज़िंदा
हैं अब तक ,
और ले रही है हिलोरे
इस अंतिम घडी में।
सोचता हूँ कि
भेज दूँ मैं
इस अधूरे खत को ही।
शायद, तुम्हारे हाथो को छू
ये पूरा हो जाए।
(३)
आज जवाबी खत ,
आया है मेरी
दहलीज पर।
पर , नाजाने क्यों ,
इसमें वो खुशबु नहीं,
जो है मेरी जानी पहचानी।
एक आभास है,
जैसे घटित हुआ है,
कुछ अनिष्ट ,
इस पल में।
(४)
और अब रख दिया है ,
बिना पढ़े इस खत को,
उसी दराज में ,
जहाँ रखे है ,
मेरे अधूरे खत।
शायद , ये खत
भी अधूरा था ,
जो हो गया है पूरा
मेरे छूने से।
अब मै भी ,
मर सकता हूँ ,
चैन से।
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